जिवन जीने की राह
संवेदनशीलता बचाकर सफलता मिले
जिन बातों से जीवन बनता है उनमें संवेदनशीलता का बड़ा योगदान है। इसकी सीधी परिभाषा है अपनापन, प्रेम, करुणा। भगवान जब मनुष्य को जन्म देता है तो ये सब लबालब भरकर देता है। बढ़ती उम्र के साथ शिक्षा, अनुभव, पद-प्रतिष्ठा, पहचान धीरे-धीरे संवेदनशीलता को समाप्त करने लगती है । फिर आज के दौर में तो यह कमजोरी मानी जाती है। संवेदनशीलता बचाकर सफलता प्राप्त करना और संवेदनशीलता को समाप्त कर सफल होने के उदाहरण हैं श्रीराम और रावण। इसी स्तंभ में हर मंगलवार को हमने किंष्कंधा कांड के हनुमानजी और को पढ़ा, उससे पहले सुंदर कांड में हनुमानजी के चरित्र को जाना था। अब लंकाकांड में हनुमानजी की भूमिका को क्रमश: पढ़ते चलेंगे। वैसे तो रामचरित मानस हिंदुओं का प्रमुख ग्रंथ है लेकिन, इतना लोकप्रिय हुआ कि सारे धर्मों से मुक्त होकर जीवन की आचार संहिता बन गया। लंका कांड में श्रीराम और रावण का युद्ध प्रमुख है। राम-रावण के बाहरी युद्ध की तरह एक युद्ध हमारे भीतर भी चल रहा है दुर्गुण और सदगुणों का। आगे लंका कांड में इसी परे चर्चा करेंगे कि हमें इस युद्ध में सदगुणों को जिताना है। सफल होना है और शांत भी । सफल रावण भी था, सफल राम भी थे। रावण की सारी सफलता अशांति के साथ थी और राम कुछ नहीं होने के बाद भी सफल और शांत हुए। रावण जीवन में जो भी संवेदनशील था उसे खत्म कर चुका था। उसकी संपत्ति उसके लिए ज्वालामुखी बन गई थी। वह स्तात प्राप्त कर सफलता के शिखर पर था और राम सत्ता छोड़न के बाद शिखर पर थे। इन दोनों के बीच हनुमानजी की प्रमुख भूमिका थी। अब इसी को जीवन से जोड़ते चलेंगे। हमें हर हाल में अपने ही भीतर के रावण यानी गलत को पराजित कर सही के साथ जीवन बिताना है।
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